Chapter- 6
जैव प्रक्रम
सजीव : जीवित वस्तुओं को सजीव कहते है। सभी पौधे और जन्तु सजीव वस्तुएँ है।
सजीवों के लक्षण :- गति, प्रचलन, पोषण, वृद्धि, श्वसन, उत्सर्जन, प्रजनन, मृत्यु आदि सजीवों के प्रमुख लक्षण है।
निर्जीव :- जिन वस्तुओं में उपरोक्त लक्षण नहीं पाए जाते है उन्हें निर्जीव कहते है ।
जैव प्रक्रम :- जीवधारियों में जीवित रहने के लिए होने वाली समस्त क्रियाओं को सामूहिक रूप से "जैव प्रक्रम" कहा जाता है ।
वे सभी प्रक्रम जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण का कार्य करते है। उसे "जैव प्रक्रम" कहते है।
जैसे- पोषण, पाचन, श्वसन, वहन, उत्सर्जन, प्रचलन, नियन्त्रण एंव समन्वयन इत्यादि ।
जीवन के अनुरक्षण के लिए आवश्यक प्रक्रम :-
1. पोषण
2. श्वसन
3. परिवहन
4. वृद्धि
5. उत्सर्जन
पोषण :- जीव शरीर को वृद्धि एवं विकास के लिए विभिन्न पोषकों, जैसे- कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन्स एवं खनिजों की आवश्यकता होती है। इन्हें सम्मिलित रूप से "भोजन" कहते है।
भोजन को अन्तर्ग्रहण करने की प्रक्रिया " पोषण" कहलाती है।
पोषण की आवश्यकता :- शरीर में क्रम की स्थिति के अनुरक्षण तथा ऊर्जा प्राप्ति के लिए होती है।
सजीव अपना भोजन कैसे प्राप्त करते है ?
1 स्वपोषीः- ये जीव अकार्बनिक स्रोतों से कार्बन डाई ऑक्साइड तथा जल ग्रहण करके कार्बनिक खाद्य बनाते है। जैसे- सभी हर पौधे, और कुछ जीवाणु ।
2 विषमपोषी :- ये जीव जटिल कार्बनिक पदार्थों को ग्रहण करते है। जिनके विघटन के लिए जैव- उत्प्रेरकों (एन्जाइमों) की आवशयकता होती है। जैसे जन्तु एंव कवक
स्वपोषी पोषण :-
इनमें कार्बन तथा ऊर्जा की आवश्यकताएँ प्रकाश संश्लेषण द्वारा पूरी होती है।
प्रकाश संश्लेषण :- इस प्रक्रिया में हरे पौधे पर्णहरित की सहायता से सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में मृदा से जल तथा वायु से CO2 ग्रहण करके शर्करा (कार्बोहाइड्रेट) का निर्माण करते है। साथ ही ऑक्सीजन उत्पाद के रूप में मुक्त करते है।
6CO2 + 12 H2O → C6H12O6 + 6O2 + 6H2O
सूर्य का प्रकाश ग्लूकोज
प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया निम्नलिखित तीन चरणों में पूर्ण होती है-
(1) क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करना।
(2) प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरित करना तथा जल अणुओं का हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन में अपघटन ।
(3) कार्बनडाई ऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन ।
रन्ध्र :- पौधों के हरे भागों की बाह्य त्वचा में असंख्य सूक्ष्म छिद्र उपस्थित होते है। जिन्हें रन्ध्र कहते है।
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के लिए गैसों का अधिकांश आदान- प्रदान इन्हीं रन्ध्रों के द्वारा होता है। इसके अलावा रन्ध्र पौधो के हरे भागों से जल की अतिरिक्त मात्रा को जलवाष्प के रूप में बाहर निकालने का भी कार्य करते है। इस क्रिया को "वाष्पोत्सर्जन " कहते है ।
वाष्पोत्सर्जन तथा गैसों का आदान-प्रदान रन्ध्रों के खुलने एवं बन्द होने पर निर्भर करता है। यदि संध्र बन्द होते है। तो वाष्पोत्सर्जन एवं गैस विनिमय रुक जाता है।
विषमपोषी पोषण :- पोषण की वह विधि जिसमें जीव विभिन्न रीतियों से पोषण प्राप्त करते है।:
भोजन के स्वरूप, भोजन की उपलब्धता तथा इसे ग्रहण करने के ढंग के आधार पर विषमपोषी पोषण विधियाँ विभिन्न प्रकार की हो सकती है।
शाकाहारी :- गाय, हिरण आदि सीधे ही घास एंव वनस्पतियों को खाते है। इन्हें "शाकाहारी" कहते है।
मांसाहारी :- शेर, बाघ आदि इन शाकाहारी प्राणियों को खाते है इन्हें "मांसाहारी" कहते है।
मृतपोषी :- फफूँदी, यीस्ट, मशरूम आदि मृत एवं सड़े गले कार्बनिक पदार्थों से भोजन ग्रहण करते है। इन्हें 'मृतपोषी' कहते है।
सर्वाहारी :- बिल्ली, कुत्ता, मनुष्य, आदि वनस्पति उत्पादों तथा जन्तु या इनके उत्पादों को खाते है। "सर्वाहारी" कहलाते है ।
परजीवी :- कुछ जीव ऐसे होते है। जो अपने पोषक को बिना मारे अपना घोषण प्राप्त करते है।, "परजीवी" कहलाते है।
जैसे- जूँ, लीच, फीताकृमि, अमरबेल
जीव अपना पोषण कैसे करते हैं ?
अमीबा में पोषण :- अमीबा एककोशिकीय प्राणी है। जो अपनी कोशिकीय सतह पर बनाए गए अंगुली समान अस्थाई प्रवर्धो द्वारा भोजन कणों को पकड़ता है। ये प्रवर्ध भोजन कण को चारों ओर से घेर लेते है और संगलित होकर खाद्य रिक्तिका बनाते है।
इसमें भोजन कणों का पाचन होता है तथा अपशिष्ट पदार्थ पुन: बाहर निकाल दिया जाता है।
पैरामीशियम में पोषण :- पैरामीशियम भी एककोशिकीय प्राणी है। किन्तु इसकी कोशिका का आकार निश्चित होता है। और एक विशिष्ट स्थान से ही भोजन ग्रहण करता है। इसकी सतह पर उपस्थित पक्ष्माभ भोजन कणों को मुख खांच तक लाने में सहायता करते है।
मनुष्य में पोषण :-