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Chapter 5 तत्वों का आवर्त वर्गीकरण 

Sep 19, 2024

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Chapter 5

तत्वों का आवर्त वर्गीकरण 

सर्वप्रथम लेवोसिये ने तत्वों को धातु व अधातुओं में वर्गीकृत किया। 


डॉबेराइन का त्रिक नियम :- सन् 1817 में जर्मन रसायनज्ञ, वुल्फगांग डॉबेराइन ने समान गुणधर्मो वाले तत्त्वों को समूहों में व्यवस्थित करने का प्रयास किया। उन्होंने कुछ समूहों को तीन-तीन तत्वों के रूप में चुना तथा उन्हें त्रिक  कहा । इस नियम के अनुसार : मध्य तत्व का परमाणु द्रव्यमान शेष दो तत्वों के परमाणु द्रव्यमान के औसत मान के बराबर होता है डॉबेराइन उस समय तक ज्ञात तत्वों में केवल तीन त्रिक ही ज्ञात कर सके। इस कारण उनकी त्रिक पद्धति असफल रही। 

महत्वपूर्ण तथ्य :- डॉबेराइन' ने ही सबसे पहले प्लेटिनम को उत्प्रेरक के रूप में पहचाना 

न्यूलैंड्स का अष्टक सिद्धान्त :- जॉन एलेक्जेंडर न्यूलैंड ने सन् 1865 में अष्टक नियम दिया उन्होने तत्वों को उनके बढ़ते हुए परमाणु भार के क्रम में व्यवस्थित किया तथा पाया कि आठवें तत्व के गुण पहले तत्व के समान थे। जैसे कि संगीत में सा, रे, गा, मा, प, ध, नि, सा सात स्वरों बाद आँठवा स्वर पहले स्वर जैसा ही आता है। 


न्यूलैंड्स के अष्टक नियम के दोष :- 


[1] इसमें यह पाया गया कि यह सिद्धान्त केवल कैल्सियम तक होता-   ही लागू  था। क्योकीं इसके पश्चात् प्रत्येक आठवें तत्व का गुणधर्म पहले तत्व से नहीं मिलता था । 


[2] यह सिद्धान्त केवल हल्के तत्त्वों पर ही ठीक तरह से लागू हो सका था। 

[3] इस सिद्धान्त के अनुसार प्रकृति में कुल 56 तत्व होते है। एवं भविष्य में कोई भी नया तत्त्व नही मिलेगा। परन्तु जब नये तत्त्वों की खोज हुई तो उनके गुण अष्टक नियमानुसार नही थे ! 

मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी :- तत्वों के वर्गीकरण का मुख्य श्रेय "डमित्री इवानोविच मेन्डेलीफ" को जाता है। उन्होनें अपनी सारणी में तत्त्वों को उनके मूल गुणधर्म, परमाणु द्रव्यमान तथा रासायनिक गुणधर्मो में समानता के आधार पर व्यवस्थित किया। 

तत्वों के गुणधर्म उनके परमाणु द्रव्यमान के आवर्तीफलन होते है ।



मेन्डेलीफ की मूल आवर्त सारणी :- इस सारणी के मुख्य दो भाग है। 

(1) आवर्त ( क्षैतिज पंक्तियाँ) 

(2) वर्ग ( उर्ध्वाधर स्तम्भ) 


(i) आवर्त :- मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में सात क्षैतिज पंक्तियाँ उपस्थित है। इन्हें आवर्त कहते है । 

(1) पहली पंक्ति या आवर्त में केवल दो तत्व हाइड्रोजन और हीलियम है। इसे लघुत्तम आवर्त कहते है। 

(2) दूसरे व तीसरे आवर्त में आठ-आठ तत्त्व होते है। और प्रत्येक को "लघु आवर्त" कहते है । 

(3) चौथे व पाँचवे आवर्त में 18-18 तत्त्व होते है। और प्रत्येक को "दीर्घ आवर्त" कहते है । 

(4) छठें आवर्त में 32 तत्त्व होते है। इसे "दीर्घत्तम आवर्त कहते है। 

(5) सातवा आवर्त अपूर्ण है। इसमें कुल 19 तत्त्व" आते है। 

[ नोट :- दूसरे आवर्त के तत्त्व "लीथियम से फ्लुओरिन" तक 

तीसरे आवर्त के तत्व "सोडियम से क्लोरिन" तक के तत्त्व "प्रतिनिधि" अथवा "प्रारूपी तत्व " कहलाते है। ]

(ii) वर्ग :- मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में जौ वर्ग है। इन्हें क्रमश: रोमन संख्या I, II, III, IV, V, VI, VII, VIII एंव शून्य द्वारा दर्शाते है। I से VII तक के प्रत्येक वर्ग को दो उपवर्गो A व B में विभाजित किया गया है। वर्ग VIII में कुल नौ तत्व तीन-तीन के समूह में है। शून्य वर्ग में "अक्रिय गैसो" को रखा गया था। 


मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी की उपयोगिता :- 

(i) तत्वों का व्यवस्थित अध्ययन : मेन्डेलीफ ने प्रथम बार तत्त्वों को आवर्ती व वर्गो में व्यवस्थित किया। इन्होंने तत्त्वों को इस प्रकार व्यवस्थित किया। कि किसी विशेष वर्ग में एक समान गुणधर्म वाले तत्त्व ही व्यवस्थित हुए। 

(ii) तत्वों के गुणों का अध्ययन :- मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में किसी तत्त्व विशेष का अध्ययन करने से ही उस समूह के अन्य सभी तत्वों का अध्ययन हो जाता है। 

(ii) नये तत्वों की खोज :- मेन्डेलीफ ने अपनी आवर्त सारणी में अज्ञात तत्वों के लिए रिक्त स्थान छोड़ दिए। तथा उनके गुणों की भी भविष्यवाणी की जो कि बाद में सत्य सिद्ध हुई। 

(iv) सन्देहपूर्ण परमाणु द्रव्यमानों का सुधार :- आवर्त सारणी में किसी भी तत्व कि स्थिति से उसकी संयोजकता ज्ञात कि जा सकती है। और उसका तुल्यांकी भार ज्ञात होने से परमाणु भार भी ज्ञात किया जा सकता है 

मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी की सीमायें :- मेन्डेलीफ की आवर्त सारखी बहुत से तत्त्वों को वर्गो व आवर्ती में वर्गीकृत करने में सहायक है। लेकिन फिर भी इसमें कई कमियाँ है 


(i) हाइड्रोजन का स्थान :- आवर्त सारणी में हाइड्रोजन का स्थान निश्चित नहीं है। इसे वर्ग I-A में क्षार धातुओं के साथ रखा गया है। जबकि यह वर्ग VIIA में उपस्थित हैलोजनों के साथ भी समानता दर्शाता है।  

(ii) दुर्लभ मृदा तथा ट्रान्स- यूरेनिक तत्त्वों का स्थान :- दुर्लभ मृदा तत्त्वों के रासायनिक गुणों में समानताएँ है । परन्तु इनके परमाणु भार भिन्न है फिर भी इन 14-14 तत्वों को तीसरे उपसमूह B (छठे आवर्त) में एक साथ रखा गया है। जो उचित नहीं है। 

(III) अक्रिय गैसों का स्थान:- अक्रिय गैसों का उचित स्थान मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में नहीं था। 

अक्रिय गैसे (नोबल गैस) उत्कृष्ट गैसे हिलियम, निऑन, आर्गन, जिनॉन 

(iv) समस्थानिकों का स्थान :- समस्थानिकों तथा समभारिकों की खोज से यह स्पष्ट हो गया । कि तत्वों का मूल लक्षण उनका परमाणु भार नहीं होता है। समस्थानिकों के परमाणु भार भिन्न होते है। और समभारिकों के परमाणु भार समान होते है। अत मेण्डलीफ की मूल आवर्त सारणी में समस्थानिकों का स्थान निश्चित नहीं है। 

आधुनिक आवर्त सारणी :- सन् 1913 में हेनरी मोजले ने बताया कि तत्त्व के परमाणु द्रव्यमान की अपेक्षा उसकी परमाणु संख्या ज्यादा महत्वपूर्ण है। 


तत्त्वों के भौतिक और रासायनिक गुणधर्म उनकी परमाणु संख्या के आवर्तीफलन होते है ।

आधुनिक आवर्त सारणी में 18 वर्ग और 7 आवर्त होते है। 

किसी कोश में इलेक्ट्रोनों की अधिकतम संख्या 

2n² सूत्र से प्रदर्शित की जाती है 

K कोश = 2 तत्व, L कोश = 8 तत्त्व, 

M कोश = 18 तत्त्व, N कोश = 32 तत्व 


आधुनिक आवर्त सारणी के लाभ :- 

[1] प्रत्येक वर्ग में केवल एक वर्ग ही होता है । वहाँ उपवर्गो को कोई स्थान नही दिया। 

[2] तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास को आसानी से समझा जा सकता है। 

[3] S,P,d और f - ब्लॉक में तत्वों का विभाजन उनके गुणों को समझने में सहायक होता है। 

[4] किसी भी तत्व के सभी समस्थानिकों के लिए एक स्थान निश्चित किया गया। क्योंकी समस्थानिकों का परमाणु क्रमांक समान होता है। 

आधुनिक आवर्त सारणी की कमियाँ:- 

[i] हाइड्रोजन की स्थिति मेन्डेलीफ की सारणी के समान ही है। इसे क्षार धातुओं के साथ रखा गया है। परन्तु इसके कुछ गुण हैलोजन के समान भी है। 

[2] लैन्थेनॉइड व एक्टिनॉइड को आवर्त सारणी के मुख्य ढाँचे में रखा जाना चाहिए था। लेकिन इन्हें आवर्त सारणी के तल में पृथक रूप से रखा गया है। 


आधुनिक आवर्त सारणी की प्रवृत्ति :- 

[1] संयोजकता :- किसी तत्व की संयोजन की क्षमता उसके परमाणु के बाह्यतम ऊर्जा कोश में उपस्थित इलेक्ट्रोन की संख्या से सम्बन्धित होती है। इसे संयोजकता कहते है । 

आवर्त सारणी में बाएँ से दाएँ जाने पर संयोजकता पहले से 1 से 4 तक बढ़ती है। फिर 1 तक घटकर उत्कृष्ट गैस की स्थिति मे शून्य हो जाती है। 

[2] परमाणु आकार :- परमाणु के आकार से परमाणु की त्रिज्या का पता चलता है। नाभिक के केन्द्र से इलेक्ट्रॉन युक्त बाह्यतम कोश की दूरी "परमाणु त्रिज्या " कहलाती है। 

आवर्त में परिवर्तन :- आवर्त में बाएँ से दाँए जाने पर परमाण्विक त्रिज्या के मान में कमी आती है। 

वर्ग में परिवर्तन :- आवर्त सारणी में वर्ग में नीचे जाने पर तत्त्वों की परमाण्विक त्रिज्या का मान बढ़ता जाता है। 

[3] धात्विक एंव अधात्विक गुण:- 

किसी समूह में ऊपर से नीचे आने पर धात्विक गुण बढ़ता है। क्योंकी ऊपर से नीचे आने पर परमाण्विक आकार बढ़ता जाता है। 

आवर्त में बाएँ से दाएँ जाने पर जैसे-जैसे संयोजकता कोश के इलेक्ट्रोनों पर क्रिया करने वाला प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता है। इलेक्ट्रोन त्यागने की प्रवृत्ति घट जाती है। 

आधुनिक आवर्त सारणी में एक टेडी - मेडी रेखा धातुओं को अधातुओं से अलग करती है। इस रेखा पर आने वाले तत्व बोरॉन, सिलिकॉन, जर्मेनियम, आर्सेनिक, टेलुरियम, पोलोनियम धातुओं एवं अधातुओं दोनो के गुणधर्मो को प्रदर्शन करते है। इस कारण इन्हें उपधातु/ अर्धधातु कहते हैं। 


Sep 19, 2024

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