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Chapter 4 रासायनिक आबंधन तथा आण्विक क संरचना

Sep 23, 2024

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रासायनिक आबंधन तथा आण्विक क संरचना 

Chemical Bonding And Molecular Structure 

रासायनिक आबंधन की कॉसेल- लूइस अवधारणा 1916 में कॉसेल और लुइस ने आबंध के बनने की व्याख्या की। 

तथ्य:-  

  • उच्च विद्युत ऋणात्मकता वाले हैलोजन और उच्च विद्युत्- धनात्मकता वाले क्षार धातु को उत्कृष्ट गैस पृथक् करते हैं।

  • ऋणायन तथा धनायन स्थिर वैद्युत आकर्षण द्वारा स्थायित्व ग्रहण करते हैं। 

  • धनायन तथा ऋणायन के बीच आकर्षण के फलस्वरूप बने बंध को वैद्युत् संयोजक आबंध (Electrovalent Bond) कहते हैं। 


अष्टक् नियम (Octet Rule) 

रासायनिक आबंधन का इलेक्ट्रॉनिकी सिद्धांत परमाणुओं का संयोजन इलेक्ट्रॉनों के एक परमाणु से दूसरे परमाणु पर स्थानांतरण के द्वारा अथवा संयोजक इलेक्ट्रानों के सहभाजन (sharing) के द्वारा होता है। इस प्रकार परमाणु संयोजकता कोश में अष्टक प्राप्त करते हैं। इसे आष्टक नियम कहते हैं। 


सहसंयोजी आबंध 

परमाणुओं द्वारा आपस में एक - एक इलेक्ट्रॉन का साझा करके बने बंध को सहसंयोजक बंध कहते हैं। 

लूइस संरचना 

Note :- अगर अणु पर आवेश होता है तो [ ] में लूइस संरचना बना के बाहर आवेश लिखते हैं। 

फॉर्मल आवेश 

फॉर्मूल आवेश = संयोजकता इलेक्ट्रॉनों - अनांधी   - 1/2(आबधित 

किसी परमाणु पर  की कुल संख्या e-  की संख्या  e-  की संख्या)

अष्टक नियम की कि सीमाएँ 

a) अपूर्ण अष्टक 

LiCl, BeH2,AICl3, BF3 

b) विषम इलेक्ट्रॉन अणु 

NO, NO2 

c) प्रसारित अष्टक 

SF6, H2SO4,PF5 

अन्य कमियाँ 

अपवाद XeF2, KrF2, XeOF2 उत्कृष्ट गैसों अभिक्रियता को नहीं समझाता

आकृति स्पष्ट नहीं करता 

अणु की ऊर्जा अर्थात स्थायित्व के बारे में कुछ भी संकेत नहीं देता 

आयनिक या विद्युत  संयोजी आबंध 

ऋणायन तथा धनायन के बिच आकर्षण के फलस्वरूप बना आबंध 

Note:- निम्न आयन‌न एंथैल्पी व निम्न इलेक्ट्रान लब्धि एंथैल्पी वाले तत्वों  के बीच आयनिक  बंध  सरलता से बनता है। 

जालक एंथैल्पी 

किसी आयनिक ठोस के एक मोल यौगिक या  अणु  को उसके आयनों  या परमाणुओं को प्रथक करने के लिए आवश्यक ऊर्जा जालक एंथैल्पी कहलाती है। 


आबंध लम्बाई 

* आबंधित परमाणुओं के नाभिकों के बीच साम्यावस्था दूरी | 

* आबंधित अवस्था में दोनो परमाणुओं के क्रोड तक की दूरी सहसंयोजकता त्रिज्या मानी जाती है। 

*अनाबंधित अवस्था में संयोजी कोश सहित त्रिज्या वांडरवाल त्रिज्या कहलाती हैं। 

आबंध कोण 

किसी अणु के केन्द्रीय परमाणु तथा उसके साथ आबंधित अन्य परमाणुओं के मध्य के कोण को आबंध कोण कहते हैं। 

आबंध एंथैल्पी  

गैसीय अवस्था में दो परमाणुओं के बीच एक आबंध को तोड़न के लिए आवश्यक ऊर्जा को आबंध एंथैल्पी  कहते हैं। 

मात्रक - kjmol-1

ΔaH=498 kjmol-1


बहुपरमाणुक अणुओं में आबंधक एंथैल्पी  के लिए आबंध एंथैल्पीयों  का औसत मान निकालते हैं। 


आबंध कोटी  

सहसंयोजी आबंधों की संख्या ही आबंध कोटी कहलाती है। 


Note :- आबंध कोटी बढ़ने पर आबंध एंथैल्पी बढ़ती है, जबकि आबंध लंबाई घटती है। 

अनुनाद संरचना 

किसी अणु को केवल एक लूइस संरचना द्वारा समझाया या बनाया नहीं जा सकता तो समान ऊर्जा, नाभिकों की समान स्थितियों तथा समान आबंधी एवं अनाबंधी इलेक्ट्रॉनों युग्मों वाली कई संरचनाएँ विहित (canonical) संरचनाओं के रूप में लिखी जा सकती है। 

इन विहित संरचनाओं का अनुवाद शंकर (Resonance Hybrid) अणु की संरचना बनाता है। 



आबंध - ध्रुवणना 

सहसंयोजक बंध को अधिक विद्युत ऋणता वाले तत्व अपनी ओर आकर्षित कर लेने पर अणु में ध्रुवणता उत्पन्न हो जाती है, जिसे द्विध्रुव आघूर्ण कहते हैं। 

मात्रक डिबाएं (Debye) 1 D = 3.33564X10^-30 cm 

संयोजकता कोश इलेक्ट्रॉन युग्म प्रतिकर्षण सिद्धांत 

VSEPR 

अणु की आकृति, केन्द्रीय परमाणु के आसपास उपस्थित संयोजी कोश इलेक्ट्रॉन युग्मों की संख्या पर निर्भर करती है। 

संयोजकता - कोश एक गोले के रूप में माना जाता है 

इलेक्ट्रॉन युग्म एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते जिसके परिणाम स्वरूप यह गोले की सतह पर अधिकतम दूरी पर स्थित होते हैं। 

बहुआबंध  के इलेक्ट्रॉन युग्मों को एकल सुपर युग्म माना जाता है। अनुनादी संरचनाओं पर VSEPR लागू होता है। 

इलेक्ट्रॉन युग्मों के बीच प्रतिकर्षण का क्रम 

lp-lp>lp-bp>bp-bp


संयोजकता आबंध सिद्धांत 

संयोजकता आबंध में या दो परमाणुओं के बीच जब सह-संयोजक बंध से हो परमाणु जुड़े होते हैं तो सह-संयोजक बंध के इलेक्ट्रॉन पर केवल एक नाभिक का प्रभाव ना होकर दो नाभिकों का प्रभाव आ जाता है। 

दो प्रकार के प्रभाव होते हैं 

आकर्षण बल व प्रतिकर्षण बल 

आकर्षण बल ज्यादा प्रबल होता है। 

परमाणु कक्षकों का अतिव्यापन 

दो परमाणुओं के बीच कक्षकों का अतिव्यापन धनात्मक, ऋणात्मक, या शून्य हो सकता है। 

दिशा और फ़ैज (चिन्ह) पर निर्भर करता है। 

केवल धनात्मक या फेज़ में अतिव्यापन होता है। 


अतिव्यापन के आधार पर सहसंयोजी बंध दो प्रकार के होते हैं। 

सिग्मा (σ) आंबंध 

-सिरेवार या अक्षीय अतिव्यापन भी कहते हैं। 

 ii) पाई (𝛑)आंबंध 

अक्ष एक दूसरे के समांतर तथा अंतर्राभिकीय कक्ष से लंबवत होते हैं। इस प्रकार पार्श्व अतिव्यापन के फलस्वरूप निर्मित कक्षक में परमाणुओं के तल के ऊपर तथा नीचे दो प्लेटनुमा आवेशित अभ्र होते हैं। 

Note - सिग्मा (σ) आंबंध पाई (𝛑)आंबंध  से ज्यादा प्रबल होता है। 

संकरण 

पॉलिंग के अनुसार परमाणु कक्षक संयोजित होकर समतुल्य कक्षकों का निर्माण करते हैं जिन्हें जिन्हें संकर कक्षक कहते हैं।  

→ संकर कक्षकों की संख्या संकरण में भाग लेने वाले कक्षकों की संख्या के बराबर होगी 

→ संकर कक्षकों की ऊर्जा व आकार समान होगा। 

→ शंकर कक्षक ज्यादा स्थाई होते हैं। 

→ संकरण ज्यामिति दर्शाता है। 


आण्विक कक्षक सिद्धांत 

एफ. हुड तथा आर. एस. मुलिकन द्वारा दिया गया। 

→ अणु में इलेक्ट्रॉन आण्विक कक्षकों में उपस्थित रहते हैं। 

→ आण्विक कक्षक तुल्य ऊर्जा एवं उपयुक्त सममिति परमाणु कक्षकों के संयोग से बनते हैं। 

→आण्विक कक्षक बहुकेंद्रीय होता है अर्थात् इलेक्ट्रॉन एक से अधिक परमाणुओं / नाभिकों के प्रभाव में रहता है। 

→ आण्विक कक्षकों की संख्या संयोग करने वाले परमाणु कक्षकों की संख्या के बराबर होती है। 

जब दो परमाणु कक्षकों को मिलाया जाता है तो दो प्रकार के आण्विक कक्षक बनते हैं 

1-आबंधन आण्विक कक्षक 

2-प्रतिआबंधन आण्विक कक्षक 

→ आबंधन कक्षक अधिक स्थाई होता है क्योंकि इसकी ऊर्जा कम होती है। 

आण्विक कक्षकों  को पाउली सिद्धांत तथा हुंड नियम का पालन करते हुए ऑफबाऊ नियम के अनुसार भरा जाता है। 


रैखिक संयोग 

Ψmo=Ψa+Ψb

σ=Ψa+Ψb    σ*=Ψa-Ψb

आबंधन         प्रतिआबंधन 

आविक कक्षकों के प्रकार 

σ,𝛑,δ

सिग्मा आण्विक कक्षक आबंध अक्ष के परितः सममित होते हैं। जबकि 𝛑 आण्विक अक्ष के सम्मानित नहीं होते। 


1S कक्षकों के रैखिक संयोग से  σ1s , σ*1s बनते हैं। 

Px, Py में कक्षकों का अतिव्यापन कक्ष के परित सममित नहीं होता है। 

2Px-2Py      𝛑2Px-𝛑*2Px

𝛑2Py-𝛑*2Py

2Pz-2Pz 𝛑2Pz-𝛑*2Pz